रामवयस्बर। १३३ यहि विधि सासन दै सुमंत को उठन लगे महराजा। आये चारि विदेह दुत तह त्वरा करावन काजा ॥७८६॥ दूतन सों पुनि कह्यो अवधपति गोधूली सुभ वेला । चली बरात जाय सरजू तट रहिहै अव नहि भेला ॥. जाहु दूत दीजै विदेह को आसुहि खबरि जनाई। 'चौथे दिवस दरस करिहैं हम मिथिलापुर महँ आई॥७६०॥ सुनिकै दूत अकूत मोद लहि चले तुरत तिरहूता। गए दानमंदिर दसरथ इत बारणे विप्रन पूता॥ हय गय भूमि कनकपट भूषन धेनु धाम धन बेसा। • किये दरिद्र हीन जग जाचक राम लषन उद्रेसा ॥१॥ (दोहा) खैरभैर माच्यो अवध सुंदर सजी बरात । गोधूली बेला सुभग आई अति अवदात NE२||. बरात का चल्ना .. (छंद चौबोला) उठ्यो चक्रवर्ती आसन ते मंद मंद पगु धारयो ।' पढ़त स्वस्त्ययन विप्रमंडली स्वर-जुत वेदन चारयो । कनककलस धरि सीस सहस्त्रन आगे सधवा नारी।' करहिं मंगलामुखो गान बहु मंगल सुरन सवारी H७६३ नारी घरसि बसि लाजा सुम गावहिं मंगल गीता.. बिजु-छटासी चढ़ीं.अटा में कनफलता-छषि जीता ॥
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