पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५०

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रामस्वयंवर । गुरु वशिष्ठ आगू पगु धारे पाछे कौसलभूपा!. : , सेाहत मनहुँ देवगुरु-संजुत देव-अधीस अनूपा ॥६६॥ यहि विधि चारु चक्रवर्ती नृप चारु चौक पगु धारा। भरत सत्रुहन सजे खड़े तहं सुंदर जुगल कुमारा॥ . प्रथम वशिष्ठ चढ़ाये स्यंदन दसस्यंदन नृपराऊ। लगी तोप तड़पन तिहि अवसर परयो निसानन घाऊII७६५॥ भयो.सवार भूप निज रथ में मनिगन अमित लुटाई। आठ आठ घोड़े रथ जोड़े हीरन साज सजाई ॥ भरत सत्रुसूदन सुमंत को कह्यो वुलाय नरेला। सैन चलावहु जौन भौति हम प्रथमहि दियो निर्दसा७६६॥ करि अभिवंदन दिगस्यंदन-पद तीनहुँ गए तुरंता। रिपुहन हयग्न, भरत नागगन, रथगन रह्यो सुमंता . चली बरात अवधपुर ते तर करि दुदुभी धुकारे । नौवत्त झरत चली नागन महं रख करनाल अपार ॥७६GN यहि विधि चल्यो तुरंगम मंडल सुर सवारन पाछे । राखे अमिलायें अपने मन राम लखय कव आछे ।। बाजीमंडल के पीछे पुनि मंडल चल गयंदा।। मनहुँ पवन पुरवाई पावन उदय श्याम घन वृंदा ७६८ शर्बुजय गजेंद्र गजमंडल मधि में भ्राजत भारी। . । राजकुमार सवार भरत तिहि राजत जन-मनहारी ।। । गजमंडल के पाछे सोहत रथमंडल नहि दुरे। ... बरन धरन-वाजिन की राजी राजि रही भगकरे ||७EEN