पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६२

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रामस्वयंवर आवत सभा हेतु मिथिलापति आवे चारिंउ भाई ।८६७६' जुगल सिंहासन मनिन जटित तहँ सभा मध्य धरवाए । तैसहि जुगल सिहासन सन्मुख धरवाए छवि छाए ॥ . तिनते लघु पुनि पंच सिंहासनसन्मुख सुभग सुहाए। • निमिसिन रघुवंसिन आसन जथा जोग्य लगवाए ॥८६८॥ सादर लै सुमंत बैठावत जथा राज-मरजादा। सचिव मुसाहिब नृप सरदारन ददत भूप धनिवादा। • जुरे सभाजित सब रघुकुल के दशरथ के दरबारा । • राज विभूति विराजि रही बर राजसमाज अपारा ८६६॥ तिहि अवसर आये रघुनंदन सँग सुंदर त्रय भाई। . माथे मुकुट मनिन के गाथे भाथे कंध सुहाई ।। जगमगात जामा जरकल को कसि कम्मर रतनाली । डारे द्वालन में करवालन ढालन पोठि बिसाली ॥८७०॥ आये सभा-मध्य रघुनायक ठाढ़ी भई समाजा। किये प्रणाम पिता के पद गहि आशिप दीन्यो राजा।। बैठे कनकासन महं सन्मुख समा प्रभा मह पूरी। धावन धाय आय तिहि अवसरको जनक नहिं दूरी॥८७१॥ सुनि नकीव को शोर जोर तहँ अवधनाथ सुखमानी। करि चारिउ कुँवरन को आगे चल्यो लेन अगवानी। उत लक्ष्मी निधि को आने करि निमिकुलसहित समाजा। -मिलन हेत दशरथ के आयो बर विदेह महराजा ।। ८७२ ।। 'पंच कुमार चले आगे कछु पाछे भूपति दोऊ ।।