रामस्वयंबर नहिं जनवासे नहिं रनिवासे नहिंपुर के कोउ सोए। करत तयारी महासुखारी जागतही रवि जोए ।२८॥ बात कहत इव राति सिरानी लाग्यो हान प्रभाता। द्वारदेस मह गावन लागे बंदी विरुद् विख्याता ॥ भूपति उठि उछाहयस पातुर प्रातकस्य सब करिकै। दैदैदान वुलाय द्विजन को सुतन वोलि सुख भरिकै ॥२॥ घुलावायो धशिष्ठ कौशिक को सचिव सुमंत तुरंतो। दिया निदेस घरात सजावन सुमिरि चरन थीकता। धावन धाय पुकारन लागे जस सुमंत कहि दीने । आवन लगे घराती सजि सजिशक सरिस सुखमीने ॥३०॥ (चौपाई) समय पाय मिथिलापुर केरी। थाई नाउनि सजी धनेरी। अवध भूप पहँ खबरि जनाई । नहछ कारन हेतु हम माई ॥ सजन पचन सुनत तिहि काला । मन्जनकीन चारि रघुलाला जुगल पीतपट अंबर धारे । वैठे कनक परन छविवारे । नखफरतनि नख परत सुहाये । मनु ढिग विधुन विधुन्तुद आये। फनक थार भरि नीर उरायनि । लागी देन महाउर नायनि । देति महाउर चित्र विचित्रा। जुग पद पंकज विश्व पवित्रा गुरु वशिष्ठ नहाल कर चारा करवायो जस वंस प्रचारा, पुनि वोल्यो दशरथ नृपाई। व्याह वसन पहिराबहु जाई। . यहि विधि करि नहछकर चारा सजन भवन गेराजकुमारा।
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७३
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