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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७२

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रामस्वयंबर।

राम लपन अरु भरत शत्रुहन मातुल किए प्रनामा ।

मिले युधाजितदै आशिष बहु सिद्धि होय मनकामा ||२|| दियो युधाजित कोडे नृप भरत महल महँ जाई । सकल भाँति सेापति भूपति किय रि सत्कार बड़ाई। सांझ समय पुनि सहित कुमारन नृप बैट्यो दरवारा। मंत्री सचिव सुभट सरदारहु कवि द्विजगन पगु धारा॥२४॥ गौतमतनय को भूपति से विनती किया विदेहू । पीते चारि इंड जामिनि के व्याह लग्न गुनि लेहू ।। गोधूली वेला महं हैहै काल्हि द्वार को चारा । महाराज लै चारि कुमारन करें पवित्र अगारा ॥६२५॥ सुनत चक्रवर्ती अवनीपति मन अभिलषित सुबानी। गद्गद कंठ सुमिरि वैकुंठपति कह्यो जोरि जुग पानी । नहळू काल्हि कराय महामुनि सुंदर साजि बराता। धेनुधूलि बेला मह आउब कहहु जाय मुनि वाता ह२६॥ दोउ ब्रह्मर्षि वशिष्ठ गाधिसुत सहित जनक पहँ जाहू ।

वेद-विधान साज सब साजहु जस भार्षे मुनिना ॥

मुनिवर जाय जनक मंदिर महँ पाय परम सत्कारा। साजे सकल व्याह-सामग्री जस विधि वेद उचारा १६२७॥ विवाहोत्सव फैलि गई यह बात चकित रनिवासे जनवासे। . काल्हि विवाह राम को सुनि सब भए हुलासे ।।