पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२०६

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंबर। महा भीरु ठाढ़े रहे नाहिं एको १२७॥ (दोहा) आयो यहि विधि परशुधर, महाभयंकर रूप ! . कालानल सम तेज तनु, लहे मोदि अति भूप ॥१८०३ . (कवित्त) हैहैराज बाहुन की समिक सरोप करि, कीन्ह्यों रन यज्ञ व विरचि कुठार है। जाकी वाप भीति निज रीतिछोड्यो छत्रीकुल, छिति में छमा की छपा भयो भिनुसार है॥ रघुराज कोशलेश साहनी के आगे खड़ो, भृगुकुल-कमल-दिवाकर अकार है। कोपित अपार मानी नयनन सों कर छार, वीर विकरार बोलें वैन बार बार है ।। १८१।। होतो तप तपत महेंद्र सैल वैठी हुतो, आपुई ते के लियो ते कोप को सहार है। कान में प्रचंड परी स्नातही ती आय, गुरु के कोदंड खंडवे की झनकार है। चाँकि उठ्यो चारों ओर चितै चलि दोन्ह्यों चट. उपज्यो नवीन गुरुद्रोही को हमार है। कीन्ह्यो जो अकाज छोड़ि देई सो समाज आज, कौन रघुराज कोशलेश को कुमार है ॥ १८२ ।।