पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२०५

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। मुखै तामरे बाल भय होत हेरे ॥ फराले सुलालै दिपै नयन दोऊ। सबै नाचित विश्व में वीर कोऊ ॥१४॥ चढ़ी बफ सर्पिणी सी करालैं फरक उभय नासिका वेध हालें । तजै श्वास कोपाधिकै बार बारे। मनी ज्वाल के जाल ते विश्व जारै॥ १७५ ॥ चढ़ी सर्व अगानि में भस्म भूरी। मनोभंग फैलास को भास पूरी ॥ लिहे चंड कोदंड दोदंड भारी। कसे कंध में तूण द्वै भीतिकारी ॥१७॥ वृहद् व्याघ्रचर्चा यरै पृष्ठ माहीं। . फसो काल सोख त्यों लंक पाहीं॥ महाकोप सों फंपते ओठ दोऊ। डरै देवता दैत्य देवेस सोऊ ॥१७॥ महाकाल सो कंध में है कुठारा। कियो बार बारै सुत्रिय संहारा। तहाँ मार्कंडेय आदी ऋषीशा । कहे रेणुकानंद हैं विप्र ईशा ॥१७॥ परयो पेखि प्रत्यच्छ सो पशु रखा। महाकाल सो भीति भय तौर जामा । महावीर जे शक मानै न नेकौ ।