पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२२९

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंबर। (चौपाई.) . . करि प्रनाम मंत्री कर जोरी। कीन्हीं विनय महासुखबोरी॥ चलहु कुँवर महराज बुलायो। पाप लिवावन मैं इत आयो । सुनत पिता रजाय रघुराई । चले लषन कर गहि अतुराई ॥ देख्यो पिता सभा रघुराजू। बैठे देस देस के रानू॥ करहिं सभासद उठि अभिवंदन। पानि उठोय लेत रघुनंदन ।। पिता समीप लपन रघुनाथा । परसि भूमि जोरे जुग हाथा ॥ आपन आपन नोम सुनाई । शिये प्रनाम लपन रघुराई ।। उठि नरेस उर लियो लगाई। मानहुं गयो मनोरथ पाई। मंडित कनक मनिन सिंहासन । दिय सासन कीजे लुत आसन परमासन सोभित प्रभु ठयऊ । उदय उदयगिरि रवि जनु भय झा (दोहा) होय सुखद जुबराज पद को अभिषेक तुम्हार । समय पौर मंत्री नृपति गुरुजुन किये विचार ॥ ३४३॥ (चौपाई) सकल गुनाकर जानि उदाग । सौंपहुं तुमहिं राज्यकर भारा॥ इन्द्रियजित रहियो सब काला । सब सो राखहु विनय विसाला। आपन राज्य और पर राजू । लै सुधि सकल किह्यो सब काज । कियो कोप संचित धन भूरी । आयुध सकल रहैं नहिं दूरी ।। राजनीति राजन को रामा । देवन जथा सुधाप्रद कामा । काल्हि सौपि तुमको सब राज.। मैं करिहौं परमारथ काज ॥ रघुपति सुनत पिता की बानी । वोले वचन विनय रस सानी