पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर। सचिव सुनत शासन साहिब को सादर कह्यो सराही ॥ प्रभुशासन अनुसार वाजिमख हाई विधि हत नाही ॥ यह सुनि पुलकि वशिष्ठादिक मुनि दै नृप आशिरवादा। माँगि विदा निज निज अवास को गये सहित अहलादा ॥३६॥ यहि विधि मुनिन बिदा करिभूपति सचिवन मख हित भापी। तुरत गये रनिवास अवास हुलासित सुत-अभिलाषी॥ कौशल्या कैकयी सुमित्रा आदिक जे महरानी। तिन से कह्यो पुत्र हित हयमख हम दीन्ह्यो अब ठानी ॥३७॥ ___ . . (दोहा) 'सुनत वचन तिन के वदन, विकसि भये मुदवंत । जिमि लहि अंत हिमंत को, सर सरोज विकसंत ॥३८॥ यहि विधि दसरथ भूमिपति, कौशल्यादिक रानि। भनत परस्पर वचन वहु, सिगरी रैनि सिरानि ॥ ३६॥ । शंगी ऋषि की कथा। (छंद चौवाला) उठि भूपति करि नित्यनेम सब सभासदन पगु धारे । तहाँ सुमंत एकंत जाइ सिर नाइ वृतांत उचारे ॥ सुनहु नाथ यह कथा पुरानी एक समय बन माहीं। गये गलानि मानि मन में हम भजन-हेतु हरि काहीं ॥४०॥ दीन देखि माहि अति दयालु तहँ सनत्कुमार सिधारे । 1.. ज्ञान विज्ञान विराग विविध विधि मंजुल बचन उचारे ॥