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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२४३

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२२७
रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। २२७ तोसे कयहुँ, उसन हाये को मोर न होत विचारा । हवे नहिं सके जन्म भरि मोसो तेरो प्रतिउपकारा ॥ ४१७॥ '. अस कहि बोलि कहो कपिराजहि अब वाहिनी चलायो। सिंधुतीर फल फूल यलित यन डेरा सैन्य डरायो। सुनि प्रभु सासन परम हुलासन सासन सुगल सुनायो। जयतिराम कहि दिलिदच्छिन को कपिवाहिनीचलायो॥४९८॥ बसत पंथ प्रभु चारि दिवस मह गये तोयनिधि तीरा। डेरा करवायो दै सासन कपिदल को रघुवीरा ॥ , उतै गयउ जवते मारुतसुत जारि निसाचर नगरी। तवते कहैं नारि सिगरी तह बनी यात अव बिगरी ॥१६॥ .: रावग मंत्रिन सकल युलायो करन मंत्र तह लाग्यो। इंद्रजीत आदिक तह बैठे कुंभकर्णहूँ. . जाग्यो । देन लगे मंत्री अनुमति अस कपिन भीति नहिं भी। मर्कट मनुज अहार हमारे लखत बेचारे छीजें ॥४२०॥ बोल्यो तहां विभीषण बानी सुनहु निशाचरराजा । काल विवस भापत सिगरे सठ होई अवलि अकाजा ।। सुनत दशानन सोनित आनन छाय दिसानन शोरा। घोल्यो वचन अरे कादर तू भयो बंधु कस मोरा ॥४२१॥ परुप वचन सुनि दशकंधर को उठ्यो विभीषण कोगी। चारि सचिव लै संग गगन ते कहो बचन चित चोपी॥ मैं अब जाऊँ जहाँ रघुकुलमनि दूसर नाहिं दिखाई। ..अस कहिचल्यो विभीषण नसपथ सिंधुपारद्रुत आई ॥४२२॥