रामस्वयंबर। शांता सुता भूप दशरथ की दोजै ताहि विवाही। तव सुकाल महिपाल राज्य में हैहै प्रजा उछाही ॥ विप्र-वचन सुनि तव घसुधापति चिंता अति उर मानी। मुनिवर केहि उपाय ते आधु पुछिहैं सचिव सुज्ञानी ॥४७॥ मुनिवर आनन सचिव पुरोहित भूपति विपिन पठेहैं। भीति विभांडक की तेहि कानन मुनि आनन नहिं जैहैं॥ मुनि आनन उपाय भूपति से सादर सचित्र सुनैहैं। गनिकागन बन जाय अवसि भृगी ऋषि को लै ऐहैं॥४८॥ मुनि-आगम प्रभाव ते वासव वरषि सुभिक्ष चनैहैं । शांता सुता शांत कांतहि लहि अनुपम सुख उपजैहैं। सोई ऋगी ऋषि दरसथ को अश्वमेध करवैहैं। चारि कुमार महासुकुमार उदार अवधपति पैहैं ॥४६॥ महा विक्रमी वंश विधायक पैहैं नृप सुत चारी। पूरव सनत्कुमार कह्यो अस मोलों सकल उचारी ॥ ताते राजसिंहमनि आसुहिं अंग देस पगु धारो। सदल सवाहन जाइ ऋपीशहिल्यावहु करि सतकारो ॥५०॥ सुनि सुमंत के वचन अवधपति अतिसय आनंदमानी। लै अनुमति वशिष्ठ से आसुहि गवन दियो तहँ ठानी॥ सहित सकल रनिवास सचिवगन सुंदर सैन्य सजाई । चल्यो अवधनायक सब लायक अंग देस मन लाई ॥५१॥ डेरा करत सरित वन पत्तन मंद मंद महराजा। पहुंचे अंगदेस जहं निवसत नंगी ऋषि द्विजराजा ॥
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