पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७०

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२५४
रामस्वयंवर।

२५४ रामवयंवर गिरहिं गगन ते कटि कटि वाना ।महा भयंकर लूक समाना।। . रावण रथी राम पदचारी । सुरपति लखि मातली हँकारी ।। सायुध स्पंदन मम लै जाहू । तिहि पर चढ़े भानुकुलनाहू सुरपति सासन सुनि सुख पायो। मातलि रथ अवनी लै आयो। करि प्रनाम वोल्यो कर जोरी । सुरपति विनय कियो प्रभुथोरी ॥ रघुनंदन चदि स्यंदन माहीं। हनँ वान वृदन रिपु काही ॥ मातलि विनय सुनत रघुराई । दै परदच्छिन चढ़े • तुराई ॥ " : (दोहा) . रघुनंदन स्पंदन चढ़े सोहे मधि संग्राम । मानहुँ भानु सुमेरु यर उदित भयो अभिरास ॥६०७॥ . " (चौपाई) . . होन लग्यो तव द्वै रथ जुद्धा । रावण राम भये अति कुद्धा ।। तव रावन रन कोपित भयऊ । सहस वान प्रभु पर तजिंदयऊ॥ पुनि मातलि कोबहु सरमासो। वासवध्वजो काटिरथ डायो॥ कियो व्यथित वासव के वाजिन। प्रभुंकहमूद्योहनिसर-राजिन॥ भुजा वीस देससीस भयावन । देखि पसो रन रोपित रावन ॥ सिथिल भये मनुप्रभुसुमतीला । देखि विकल भेसुर रनलीला॥ देवन कपिन विकल लखि रामा । नेसुक भ्र कुष्टि कियोतह वामा रावणहूँ जान्यो निज काला । हट्यो कछुक लैजान विसाला ।। पुनि थिर चित करिकै दशशीशा । थायोसन्मुख जहँ जगदीशा। तह सकोप.निशिचरगणनाथो । लीन्हो महाशूल यक हाथा ॥ अस कहि तज्यो शूल बरजोरा । तडितप्रकाश भयो चहुँ ओरा॥