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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६९

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। तर गंधर्व अस्त्र प्रभु त्यागा मरकत अस्त्र खोज नहि लांगा ॥ तिहि अवसर रामानुज कोपी । मासो सात धान चितं चोपी ।। इक सरकाट्योध्वजा पताझा ! पुनि काट्यो सारथिसिरताका देखि विभीषण राक्ग कोपा । चाह्यो करन बंधु कर लोपा ॥ तहि दशानन अतिहि रिलाई । ब्रह्मदत्त लिय शक्ति महाई।। जान्यो लपन विभीषग नासा । आगू भयो बचावन आसा ।। हने शक्ति कह सायक लाखा दियोनासिदसमुख अभिलाखा। तब लंकेत कोपि कह वाता।लियो बचाय मोर सठ भ्राता।। ताते सावधान रहु वीरा । भस्म करी यह शक्ति सरीरा॥ अस कहि लपन ताकि रनधीरा । तजी शक्ति पुरदायक पीरा॥ आवत शक्ति देखि रघुराई । कह्यो स्वस्ति जीवै मम भाई॥ . (दोहा) लगी लपन उर माँझ सो कियो धरनि लगि फोर। लिथिल अंग विन संश है गिरिगो राजकिसोर ॥५६॥ (चौपाई ) राम बहुरि सो शक्ति उखारी । दै.भुज वीच तोरि तिहि डारी॥ सति उखारत महँ लंकेसा दियो छाय हनि वान असेसा ॥ कपिपति मारुति काहँ वुलाई । वोल्यो सरुप वचन रघुराई। रहह लपन कह घेरि कपीला। विक्रम काल मोहिं महँ दोला। अत कहि रघुकुलवीर उदंडा । कियो धनुष टंकोर. अखंडा॥ हन्यो हजारन सायक घोरा । सर.अंधियार भयो चहुं ओरा॥ रावण राम वान नभ छाये। लै विमान सुर विकल पराये ।।