पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७७

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। (दोहा) प्रभु अभिमत निज जानि तह, सैनन दीन रजाय । अनुसासन गुनि लपन तह, दीन्यो चिता वनाय ।। ५६३ ।। (चोपाई) बैठ अधोमुख प्रभु तिहि ठामा । मानहुँ कालरूप भय-धामा । कियो प्रदच्छिन पिय चैदेही । गई चिता ढिग राम-सनेही । दियो लगाय अगिन तह वाला । उठी विलाल ज्वाल विकराला ॥ बोली बचन विदेहकुमारी । सुनहु सवै साखी असुरारी ।। तन मन बचन राम जदि मोरे । लख्यों न और नयनह कोरे ॥ तो पायक रन्छ यहि काला । साखी सकल देव मुनि माला ।। असकहि प्रविसी अगिन मकारी।लियो अगिन जिमि पिताकुमारी। प्रगट्यो पावक रूप पुनीता । बैठायो निज अंकहि सीता ॥ (दोहा) पंचवटी महं जानकी राम रजायसु पाइ। पावक माहं प्रवेस किय छायारूप टिकाइ ॥५६८॥ सो छाया वपु सिय मिल्यो प्रगट्यो रूप प्रधान । सो पावक धरि अंक मह निकस्यो अति हरपान ॥५६६ ।। (चौपाई) कहो रामती करत प्रनामा । लेहु सुद्ध प्रभु आपन वामा । जगजननी यह विगत विकारा। धर्मरूप कीरति आकारा॥ तिहि अवसर प्रमुदित रघुराई । सीते लिए निकट बैठाई ॥ सुर मुनि कपि कीन्हे जयकारा । वरपे कुसुम देव बहु वारा ।।