पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६४
रामस्वयंवर।

रामवयंवराः सकल वीर चाहत अस स्वामी । तुम सबके हो अंतरजमी ॥ ला अवधपुर संग सिधाई । राजतिलक देखें सुख छाई ।। संग चलव अभिलाप विचारी । कह्या कृपानिधि वचन पुकारी। गवनहु संग सुके हमारे । सहित पीर वानर वलवारे ।। चढ़े सकल कपि पुहुप विमाना। निसाचरंद्र कपींद्र महाना॥ ' (दोहा) जानि समय सुभ राम तहँ सासन दिया सुजान। अवध-और उत्तर दिसा गवनै पुहुपविमान ॥ ५९२ ॥ (चौपाई ) ' . .. .. राम रजाय पाय हरपाना । गगनपंथ वै चल्यो विमाना। गयो गगन जय ऊंच विमाना । देख्यो समरभूमि भगवाना ।। किरिकथा के उपर विमाना । गयो गंगन महँ वेग महाना ।। चित्रकूट नाके रघुवीरा । लख्यो जमुन मर्कतमय नीरा ।। गंग जमुन संगम सित स्यामा। तीरथराज सकल सुखधामा ।। पुनि उत्तर लखि पानि पसारी। वाले राम त्वरा करि भोरी। लखु लखु लखु मिथिलेशकुमारी। राजधानि मम परै निहारी ।। देखु अवधपुर महल उतंगा । देखि परति सरजू सिंत रंगा। पेखि प्रयाग विमान उतारे । प्रभु येनी मन्जनः पगु धारे .. सीय-लपन-जुत मजन कीन्हें। विप्रन दान अनेकन दीन्हें ।' सब विधि जोग जानि हनुमाना। कहे वचन मंजुल भगवाना ।। जाहु. अवध केसरी किसोरा। जहाँ बैठ भ्राता लघु मोरा ।।