२३ रामस्वयंवर। घाल्मीकि सो अस बचन, हरपित कहि करतार । तहँ माहित है गये, गये ब्रह्म-आगार ॥१२३॥ आसन रचि पूर्वान कुस, करि आचमन मुनीस । . रचन हेतु रघुघर चरित, नाइ सीस जगदीस ॥१२४॥ वैथ्यो करत विचार मुनि, सुमिरि राम कर जारि । निश्चल लगी समाधि मन, गयो राम रस घोरि ॥ ९२५ ॥ श्रीरघुवंस चरित्र को, रचन सहित विस्तार । मुनि कीन्ह्यो सूचन प्रथम, वरनहुँ सकल उदार ॥२६॥ (छद चौबोला) जेहि बिधि जन्म लियो कोसलपुर नारायन सुखसारा । राम नाम अभिराम धाम सुख हरन हेतु भुविभारा ।। क्षमालिधु पुनि दीनबंधु प्रभु सील संकोच सुभाऊ । • बरन्यो सफल महामुनि मंजुल बालचरित्र उराऊ ॥१२७॥ पुनिघरन्यो कौशिक मुनिश्रागम रामलषन जिमि माग्यो । 'लहि वशिष्ठ मुनिका अनुशासन नृप सुत दिध अनुराग्यो!! काम कथा कौशिक कुल गाथा जथा ताडुका मारी । जिमि कीन्यो कोशिक मख रक्षन रजनीचर संहारी ॥१२॥ घरन्यो पुनि मिथिलेस समागम रंगभूमि धनु-भंगा । वैदेही विवाह सुख चरन्यो बंध विवाह प्रसंगा। श्रीरघुपति अभिषेक तयारी विघ्न कैकयी कीन्हा । .सीता लषन समेत राम वनवास भूप जिमि दीन्हा ॥१२६॥ वरन्या भरतागमन वहुरि मुनि दसरथ को जलदाना ।
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