रामस्वयंवर। सेोहर लोर मनोहर नोहर माचि रह्यो चहुँ धैया । छिरकत कुंकुम रंग उमंगित मृगमद अतर मिलैया। धार अपार यही सरिता सम सरजू पीत करया। श्रीरघुराज जगत मह जागो वर्ण दकार सदैया। कोउ न रह्यो तीनौ पुर में अस एक नकार कहैया ॥१५३६ (दोहा) चैत शुक्ल नौमी नखत, पुनर्वसू विधुवार। . कौशल्या के भवन में, भयो राम अवतार ॥१५॥ चैत शुल दसमी विमल, नखत पुप्य कुजवार । मयो कैकयी के भवन, भरतचंद्र अवतारं ॥१५५॥ चैत शुक्ल एकादशी, अश्लेपा बुधवार । मयो लपन रिपुदमन को, जन्म जगत सुखसार ॥१५६ बिछे बिछीने जरकती, लसी ललित दरवार । पीत वलन भूपन बने, रघुवंशी सरदार ॥१५॥ ल्याई सखी लेवाय तह, आये भवन भुगल । नांदोमुख क्रम सों किया, हरपि शराध उताल ॥११८॥ . (छंद चौवोला) भवन भवन में परम मनोहर सोहर गावन लागी। मानंद उमंग उराव पटक नहिं इंदुमुखी अनुरागीं। भई भीर भूपति के द्वारे रज पपान है जाहीं। देस देस के वेस नरेस सुद्वार देस दरसाहीं ॥१५॥ - -
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/४५
दिखावट