पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५१

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रामस्वयंबर। उठों सकल रानी हुलसानी पीतवसन तनु धारे । दसरथ पीतांवर पहिरे तहं मंजुल बचन उचारे ॥ देव तिहारी कृपा भये सुत ताते तुमहिं उठाई।

लै आँगन प्रभु चारि कुमारन रवि ससि देहु देखाई ॥१३॥

मुनिवशिष्ठ अभिलषित सिद्धगुनि रामहि लियो उठाई। विहसि देखावन ससी दिवाकर आँगन में ले जाई ।। रामहि प्रथम देखायो रविससि पुनिलपर्ने मुनिगई। चहुरि भरत रिपुसूदन कहं तहं अति आनंद उर छाई ॥१४॥ (सवैया ) प्रभु आपने आपने देखन को अंगना में कढ़े मुनि अंक लसैं । धनिभाग्य विचारितमारितहां रथरोकिरहे हिय में हुलसे॥ तिनको करि बंदन यारहिंवार ससीजुत माद लहे सरसैं । रघुराज गुने हम देखे तिन्हें अजौं देखन को जो अजौ तरसैं॥१५॥ (सोरटा) .. सीत भानु अरु भान, यहि बिधि सुतन देखाइकै। दियो विविध विधि दान,अवधनाथ आनंद मगन॥१६॥ (दोहा) . . मुनिवर कुँवरन पानि ते, लक्ष लक्ष वर धेनु । दान करायो सविधि तह, मयों दीन गन चेनु ॥१७॥ (छंद चौबोला) . . . . . कह्यो राजमनि पुनि रघुवंसिन-आजु जाति जेवनारा। भोजन-भवन चलहु बांधव सब हिलि मिलि फरहिं अहारा॥