३४ रामस्वयंवर। किया विचार मनहिमन ऐसेोधनिधनिभाग्य हमारा।। अस विचारि सिर नाइ मनहिं मन वैठे निकट मुनीसा। वोलि भूप कह सूप निकट तव सुमिरि सत्य जगदीसा॥१८५॥ (दोहा) गुन अनेक अमिराम अति, विदित तीनिह धाम । आम जगत विनाम अति, अहै. नाम श्रीराम ॥१८॥ पुनि कैकयी कुमार को, लीन्हो अंक उठाई। मुनि पशिष्ट बोले वचन, कोसलपतिहि सुनाइ॥१८॥ भरतखंड-वासिन सकल, मरिहै सब मनकाम । ताते यह कहवाइहैं, जगत भरत अस नाम ॥१८८॥ लक्षित सकल सुलक्षननि, महावीर जग आम । तोजो सुत नृप रावरी, लहै सुलक्ष्मण नाम ॥१८६॥ वैरिद वाधक विदित, विस्व विजय धपु बाम । चौथा सुत नृप रावरी, लहै शत्रुहन नाम ॥१०॥ अस कहि मुनिवर कनक के, चारि पान कर लीन ! चारि कुमारन के तुरत, चारि नाम लिखि दीन ॥१६॥ (छंद चौवोला) औरहु चार करावहु मुनिवर ससि सूरज सुत देखें । तुम्हरी' कृपा नाथ यह आनंद हमको भयो मलेखें । चारि कुमारन के करते.कछु दीजै दान. कराई । धर्मनिसा महँ करहु नाथ पुनि पष्ठी कृत्य बनाई-॥१२॥
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