पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५३

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रामस्वयंबर। यहि विधि बरहीं छठी सुतन को भूपतिमनि निरधारी । बसे अवध आनंद अवधि लहि निरखि कुमारन चारी।। नामकरन जवते पुत्रन को कीन्हे दसरथ राई । तबते होते रहते नित नव नव मंगल मोद वधाई ॥ २०४॥ रोजहि मुनि मंडलो महीपति सादर निवति जेवावें। दीन द्विजन गृह वोलि वोलि बहु व्यंजन विविध खवावें । सुंदर कनक अमोल खटोलन नील निचोलन धारे । किलपात कबहुँ हँसत कहुँ रोवत सोवत चारि कुमारे॥२०५॥ कबहुँ निहारत कर मुख डारत कवहुँ उचारत गूंगा। पय प्यावति जननी लखि सूखत अधर निदरि दुति मूगा॥ सखी डुलावहि बिजन वैठि कोउ राई लोन उतारें। तेल वारि पट अनल जरावहिं दीठि दोप द्रुत झारें ॥२०॥ गुरु वशिष्ठ वुलवावहिं रानी आवहिं साँझ सवेरे । हाथदेन के व्याज परसि पद पावहिं मोद घनेरे ॥ कोउ मुटुको धुनघुना डुला कोउ करताल बजावैं । अंक उठाइ कोउ हलरावै सुत रोवन नहिं पावै ॥२०७१ सखि कजल को परम सलोना माल डिठोना देहीं। मनु पंकज कोना पर बैठो अलिछोना मधु लेहीं॥ कवहूं अंक उठाइ भामिनी मनिन चित्र दरसा। कबहुँ अगधरि मनिन खिलोनन अनुपम खेल खिलारि०८॥