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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५४

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Rav रामस्वयंवर। अन्नप्राशन . (दोहा) : । यहि विधि अवध अनंद महं, चीत्यो पंचम मास। . लाग्यो छठवां मास पुनि, अनि हुलास रनिवास ॥२०॥ एक दिवस नरनाह तब, गुरु मंदिर महं जाइ। गुरुपद पंकज परसिकै, बार बार सिर नाइ ॥ २१०॥ बोले बचन विनीत है, सुनिये देव दयाल । अब आयीं कुचरन सकल, अन्नप्रासनी काल ॥२१॥ (छंद चौधोला) सुनत वशिष्ठ हुलसि हिय वोले भले कह्यो महराजा । चारि कुमार अन्न को ग्रासन करवावहु कृत काजा॥ अस कहि सुभ दिन सोधि ब्रह्मऋपि तुरत सुमंत बोलायो। भादौं मासश्रवन द्वादसि को सुदिवस सुखद सुनायो॥२२॥ सुनत सुमंत पुलकि तनु बोले भले कहो मुनिराई। हैं। अव जात साज सजवावन जल मुनिराज रजाई ।। आइ गई द्वादसी हुलासिन अन्नप्रासनीवाली। . खैरभैरमाच्यो कोसलपुर चलीं सकल जुरि आली ॥२१॥ चले रंगमंदिर अति सुंदर जहं इंदिरा प्रिया लै।

तह कौशल्या अरु कैकेयी लपन जननि तेहिं काले।

औरहु सित साठि महरानी रची सची इव साँची। परिचारिका सहस्रन साहैं रति रंभा छविरांची ॥२१४॥