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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६०

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रामस्वयंवर। रघुराज तेई पद पावन की लाख लाख; . करै अभिलाख लेखा लोकल अलेख हैं ॥ ॥२३॥ (दोहा) यहि विधि बीती वैस कछु, करत विनोद विसाल ! . अवध अजिर विवरत भये, पंच वर्ष के बाल ॥२४॥ कागभुशुंडि मोह (कवित्त) नोल सैल वासी बाल राम को उपासी काग, 'जानिकै अवध अवतार अविनासी को। आयो सो दरस आसो परम हुलासो हिये, जाको वरदान है विश्व के प्रकासी को। कबहुँ न तोहि महामाया मोह भोसो भव, हैहै तू अज्ञान नासी कल्प कल्प नासी को। वायस विलोकि औधवासी रघुराज राम, चालक विलासी भूल्यों ब्रह्म गति खासी को ॥२४॥ वायस विचारयो बुद्धि सुद्धि सत्वरूप जाको, सत्ताते जगतव्यापी मायाजासु दासी है। सत चिदानंद रूप है अनूप रघुराज, सृजत हरत पालै विश्व अधिनासी है सोई परब्रह्म लीन्ह्यों औध अवतार सुन्यो, देख्यो भाइकै सो तहं ब्रह्म तेजरासी है।