४६ रामस्वयंबर। काग कह्यो हरि सो सिरनाइ हरयो भ्रम मो महिमांदरसाई॥ श्रीरघुराज को वंदन कै गिरिनोल को बायस कोनो पयानो। भकलिरोमनि ताहि को हैकै दियो निज भक्तिहि को बरदानो॥ खेलन लागे सखान के संग कोऊ यह चित्त चरित्र न जानो। जानि विलंब तुरंतहि अंब बोलाइ कराइ दियो पर पानो३२४७॥ (दोहा) करन लगे चारिहु कुंवर, माजन विविध प्रकार। जननि डोलावहिं कर विजन,निरहिं मुख बहु वारा॥२४८॥ (छंद चौवाला) इमि भोजन करवाइ माइ सब निज कर कर पग धोई। पोछि बदन पौढ़ायो लालन पालन में मुदमाई ॥ . .. चापहि पद पंकज कर कंजन सजनी विजन डोलावें। . मंद मंद रघुनंदन को तहं प्रिय पालने मुलावै ॥२४॥ दुपहर जानि जगे चारिउ सुत उबटन मातु लगा। . • गर्म सुगंधित सलिल विमल रचि सुतन सपदि नहवावै॥ देह पोंछि पुनि पछि श्याम कच चोटी सुभग बनावें। - एक एक मनि भाल उपर गहि फिरि भूपन पहिरावै॥२५॥ चहु बिधि करिश्रृंगार कुमारन सखि मंडल करि संगा। छोटि छोटि पहिराइ पहियां नप दरवार उमंगा' यहि विधि चारो कुवर सखिन संग भूपतिसमा सिधारे। पितहि विलोकन प्रथम जावहम धाये करि किलकारे॥२५१॥
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