पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६३

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रामस्वयंबर। लपन दौरिकै चढ़े ग्रीव मह मुकुट पकरि दोउ हाया। रिपुहन भरत बैठि जुग जानुन मध्य अंक रघुनाथा ।। चूमहि बदन सुतन कर भूपति ठोढ़ी धरि बतवाचें। सुनि सुनि तातरि वानि विनोदित हसे हेरि हैसवा॥२५२॥ यहि विधि सुनत खिलावत नृपमनि सिंहासन आसीने। लहत मोद भट सचिव सभासद पंडित प्रजा प्रवीने ॥ तेहि अवसर गंधर्व जुगल तहं प्रभुदरसन की आसा। चित्रसेन विश्वावसु आये दसरथ नृपति निवासा ॥२॥ करि सत्कार उदार मिरोमनि सभा बीच बैठाये । फरहु गान वालक हुलासहित शासन तिनहिं सुनाये।। सुनि गंधर्व गान तानन जुत चारिहु राजकुमारे । मंद मंद सानंद दुहुँन ढिग रघुनंदन पगु धारे ॥२५॥ सफल जानि गंधर्व जन्म निज लिये अंक बैठाई। प्रभु-पदरज सिर धारि सुखी भे प्रेम वारि झरि लाई ॥ पुनि वसुधाधिप बोलि बालकन कही विनोदित यानी । जननि भवन कह गवन करहु अव भै संध्या सुखदानी॥२५५॥ करिकै विदा कुमारन को नृप संध्योपासन कीन्ह्यो । बदन प्रसन्न सदन गुरु गमने मुनि बंदन करि लीन्ह्यो । पुनि गुरु सों कर जोरि कह्यो नृप सुनिये देव कृपाला । चूड़ाकरन करनवेधन को आयो यह सुभ काला ॥२५६॥