४८ रामस्वयंवर। चूडाकरण और कर्ण-वेधन मुनि कह भली वात भापी नप अव विलंब नहिं हाई । चूड़ाकरन करनवेधन को सुख लूटै सव कोई ।। । अस कहि विदा कियो भूपति कोसचिवनसपदिबुलाया। चूड़ाकरन करनवेधन को शासन सुखद सुनायो ॥२५७ सोध लगन सुदिवस मुनिनायक किय रनिवास जनाऊ । । चले सचिव सिर धरि मुनि शासन जाय जनाये राऊ ।। भारहि ते जागी रानी सब भूपन वसन सँवारी । जोरि सखिन मंगल गावत कल रंगभवन पगुधारी॥२५८॥ इतै राजवंसिन रघुवंसिन जोरि राजमनि आये। विसद रंगमंदिर आँगन में द्रुत दरवार लगाये। गुरु वशिष्ठ अवसर विचारि तहं चारिहु कुंवर बुलाये। गौरि गनेस पूजि पुन्याह सुवाचन सविधि कराये ॥२५॥ भूपति को मिठाई देहैं लालन कान छेदाये। अति विचित्र भूषन पुनि देहैं सिरमुंडन करवाये॥ .. परम निपुन सुखकर वर नापित लीन्ह्यो तुरत बुलाई । क्रम सों चारि कुमारन को नृपं दिय मुंडन करवाई ॥२६॥ परम मनोहर काकपच्छ जुग सिखा राखि सिर दीन्ही । करनवेध पुनि कियो सुतन कर रंगनाथ नति कीन्ही ॥ संपति अगनित दियो भिखारिन कीन्ह्यो दारिद दूरी । बजे नगारे गगन अपारे पुहुपवृष्टि भै भूरी ॥२६॥
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६४
दिखावट