पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 . 7 रामस्वयंबर।। अस कहि सजल नयन-गद्गद गर भूपति भये दुखारी । उठि तुरंत कर जोरि सुखी सुठि रघुवर गिरा उचारी ॥३१३ विप्रकाज लगि पुनि पितु शासन गुरुनिदेस पुनि भायो। __ मोते कौन धन्य धरनी महं सकल सुकृति फल पायो । सीस सूंधि दसरथ पुत्रन को फेरि पीठि में पानी । दियो, कुमारन कुशिकतनय को जै मंगल अनुमानी ॥३१४॥ .. ... (दोहा) राम लषन लै मुनि चले, धन्य जन्म निज मानि । सीतलं मंद समीर तह, बहन लग्यो सुखखानि ॥३१५॥ यहि बिधि विश्वामित्रसँग, चलत चलत मग राम । अवध नगर ते कोस.षट, आये अति अभिराम ॥३१६॥ ... .... .. (वरवै). (वरवै) . . . . . .

. . .

. ... ठाढ़े भये महामुनि समय विचारि । मधुर बचन बोले पुनि 'राम निहारि॥३१७॥ सुनहु राम रघुनंदन राजकुमार । कौशल्या 'सुखकारी प्रान पियार॥३१८॥बन्योनल्यावत मासेमन पछिताता कारज बस का करिये बनत न जात ॥ ३२६ ॥ सुनहु बत्त मम . प्यारे मंत्र उदार । बला अतिबला विद्या- मोद अगार ॥३२०॥ पढ़े जुगल विद्या. के सकल सुपास । नहिं श्रम तनु नहिं भ्रम मत नहिं वुधि नास ॥३२१॥ " " + : ... .. - :(दोहा)- ..... : .. " : सुनि प्रभु मुनि के वचन वर, चरन करन जेल धेयः। अति प्रसन्न मन सुचि सदा, बैठे मुनि मुख जोय ॥३२२॥