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पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/७६

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१५. रामखयंवरा छंद चौवाला) अवसर जानि गाधिनंदन तहँ विद्या मंत्र उचारे । कंठ कराय सिखाय न्यास सब वाले वचन सुखारे । जन अभिराम राम यहि रजनी इतहीं करहु निवासी । संकल वास को है सुपास इत आगे चले प्रयासा ॥३२३॥ संध्या समय विचारिं गाधिसुत राम लंपन सँग लीन्हें । चलि सरजूतट सुचि निर्मल जल संध्यावंदन कीन्हें ॥ पुनि आये तीनों निवास थल मुनिवर बोले बानी । सयन करव अवउचित लाल इत मम आँखो अलसानो॥३२४२ सुनि कौशिक के वचन बंधुदोउ कोमल तृन बहु ल्याई । निज कर कमल सुधारिसयन हित दोन्ही सेज बनाई है. विश्वामित्र बहुरि अपने कर कियो सेज विस्तारा । करहिं सयनसुख सहित उभय दिसिजामें राजकुमारा॥३२५॥ . . (दोहा).... सुख सावत- रघुपति लपन, ऑगम जानि प्रभात ।।1510 विश्वामित्र उठे प्रथम, राम दरस ललचात ॥३२६॥ पंथ श्रमित सोवत सुखित, छकित रह्यो मुनि देखि. सकत जगाय न राम को, समय प्रभात परेखि ||३२७१ जस तस कै साहस सहित, जागन समय विचारि । मुनि बोल्यों मंजुल वचन, सुंदर बदनः निहारि॥३२८॥ " .. स