पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/८०

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६४ रामवयंबर। मगे विहंग कुरंग विपिन के वज्रपात जिय' जानी । धुनि टंकोर कठोर घोर अति सुनि ताडुका डेरानी। करिकै क्रोध बोध नहिं कोन्ह्यो कौन जोघवर आयो । काके काल सोस पर नाच्यों को यह सोर सुनायो ॥३४॥ ___ (दोहा) । उठी तुरंतहि राक्षसी, दीन्ह्यो काल जगाय । महा मीच मूरति मनहुँ, ऐड़ानी जमुहाय ॥३४७॥ यहि विधि आई ताडुका, कीन्हे भपन उमंग ।। रामलपन मुनि जहं खड़े, पावक मनहुँ पतंग ॥३३८1 तब नेसुक मुसकाइके, चितै लपन की ओर । . साज्योधनुसायकसहज, वीर धोर सिरमोर ॥३४॥ (छंद तोटक) हरि वज्र समान सुवान लियो । दुख देवन देखत कोप किया। प्रभु सो सरत्यागि नदीठि दई । पविपात अघात अवाज भई ।। उर जाय लग्यो तिय पापिन के। द्विज देवन की दुखदायिनके। तनु कोसर फारिधस्योधरनी। तहँ तासु विलाय गई करनी।। मरिगै जव यक्षिनि संगर में । सुर दुंदुभि दोन सुअंबर में। मुनिकौशिक मोदित होत भये, रघुनंदन को मुख चूमि लये। (सवैया) . पायो महाश्रम राजकिशोर, इतै यह ताडुका के रण माहीं। है पिरात सुपंगज पानि, प्रस्वेद के विदुसरीर सोहाही