८ . रामस्वयंवर। मारीच सुबाहु युद्ध । (कवित) भापत परसपर ऋपिन के भीति भरे,मीनमुनि कौशिक न बोल्यो राम हेरिकै । दच्छिन दिला ते मना भदेव निसा है घार,उठ्यो अंधकार चारों ओरन तेधेरिदिगयोभासमान आसमान हो ते तहां, होत भै भयानक अवाज कान पेरिकै । हल्ला मख. साला मच्यो सकल विहाल भये,रच्छोरघुराज आज भापै मुनि देरिक॥३३॥ को भगे पात्र छोडिकोऊ भरे होम छोड़ि,कोऊ भो स्तुवा छोड़ि भूसुर विचारे हैं। कोऊ मृगचर्म त्यागे लैलै मुनि जीव भागे रहे मखकर्म लागे भरे भौति भार हैं। हाहाकार माचि रह्यो विश्वामित्र आश्रम में, हसि रघुराज राम केतन नेवार हैं। बैठ्यो गाधिनंदन भरोसे रघुनंदन के, जानत हमारे रघुवीर रखवारे हैं ॥३४॥ (सोरठा) यहि विधि जव मारीच, सहित सुबाहु अनेक भट। जानि न आपन मोच, किये उपद्रव अति कठिन ॥३७॥ (कवित्त) देखो देखो लपन भपन को भरोस कीन्हे, चखन निकारे मांस भखन पियारे हैं॥धाए चले आवै धर्मधुराघसका भोरु, भौति उपजावै नहिं समर जुझारे हैं । मनै रघुराज सीखे दिव्य अस्त्र कौशिक से,तिनकी परीछा लेन मन में हमारे हैं।मारिमानधास्त्र
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