पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/८८

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रामस्वयंबर। पुनि जोमुनि सबसंमत करहीं। हमहुँ तुमहुँ तेहि विधि अनुमरहीं। अस कहि कहो मुनिन मुनिराई। कार उचित भापडु सब भोई ॥ . सिगरे मुनि कौशिक रुख जानी । एकबारवाले मृदुवानी॥४०॥ मैथिल महाराज विज्ञानी । धर्म धुरंधर जश-विधानी ॥ तिनके भवन सुनी अस वाता । धनुपजज्ञ होई विख्याता॥४०॥ चलहु जनकपुर गाधिकुमारा। लै कोशलकुमार सुकुमारा॥ सुनि मुनि वचन महामुद पाई। विश्वामित्र कह्यो अतुगई४०२॥ (दोहा) भली कही मुनिजन सकल, संमत सब विधि मार। चलिहौं मैं हठि जनकपुर, लै सँग राजकिसोर ॥४३॥ जनकपुर-यात्रा (चौपाई ) अस कहि कौशिक सुदिन बनायो । तहँ तुरंत प्रस्थान पठायो । भई जनकपुर गवन तयारी | साजे सहस सकट तपधारी॥४०॥ . चली सकल मुनिराज समाजा। मध्य सबंधु लसत रघुराजा॥ जुगल याम लों पंथ सिधारे । पहुंचेजव लवसोन किनारे॥४०५॥ सोनभद्र मह सबै नहाये। अति निर्मल जल अति सुख पाये ॥४०॥ कीन्यो होम सविधि मुनिराई । जानि अस्त गमनत-दिनराई।। राम लषन दाउ सोन नहाये। संध्यावंदन करि सुख पाये ॥ गये गाधिसुत निकट तुराई । कौशिक सहित मुनिन लिरनाई। मुनि लीन्हो निज निकट बोलाई । आगे बैठायो दोउ भाई।