पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/९६

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४० रामस्वयंबर। . (लोरठा) जै जै कोसलनाथ, परब्रह्म व्यापक जगत । प्रभु मोहि कियो सनाध, फरुना वरुनालय विदित ॥४४८॥ (छंद चौवोला) गौतम-घरनी राम लपन गुनि पद गहि कियो प्रनामा । निज पतिवचन सुरति करि मुनितिय भै पूरन मनकामा | कंद मूल फल फूल विविध विधि दोन्ह्या प्रभु कह ल्याई । पूजन कियो सविधि जुग बंधुन प्रीति रीति दरसाई ॥४३॥ जोग प्रभाव आइगे गौतम प्रभुपद पंकज वंदे । राम लपन मुनि पद प्रनाम किय वारहिं वार अनंदे ॥ राम लपन कौशिक मुनिगन को गैातम किय सत्कारा । सुखी अहल्या सहित मधे मुनिगे तप हित लै दारा ॥४५०॥ (दोहा) यहि विधि गौतमनारि को, नाम अहल्या जासु । तारयो पदरज झारि निज, भजै न को पद तासु ॥४५१॥ . (दोहा) जा दिन प्रभु गौतम-घरनि, तारयो पदरज झारि । ताही दिन ताकी कुटी, कियो निवास मुरारि ॥४२॥ - . . . जनकपुर-वर्णन (छंद चौवोला) लखि प्रभात पूषनं को आवनि यामिनि जानि सिरानी।