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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग १.djvu/३२

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(३५ )
राग यमन कल्याण

(ताल तीन मात्रे १६)
शब्द गुरु नानक (श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

प्रभ मेरा अन्तरयामी जान।
कर किरपा पूरन परमेसर, निहचल सच शब्द निसाण॥
हर बिन आन न कोई समरथ, तेरी आस तेरा मन तान॥
सरब घटा के दाते स्वामी, दे सो पहरन खाण॥
सुरत सत चतराई शोभा, रूप रंग धन मान॥
सरब सुख आनन्द "नानक", जप राम नाम कल्याण॥

राग यमन कल्याण

(तीन ताल मात्रे १६)

स्थाई


समतालीखालीताली


x

धा धिं धिंधा



रे ऩीरे
यामी

रे


नीसंनी
ब्दनिसा




धा धिं धिंधा




जा

ऩीरे
मे

म॑




धातिंतिंता
रे
प्रभुमेरा

ऩीऩीरेरे
कि

ऩारे
नह




ताधिं धिंधा
म॑रे
अं


पापू