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(ताल तीन मात्रे १६)
शब्द गुरु नानक (श्री गुरू ग्रन्थसाहब)
- कर किरपा पूरन परमेसर, निहचल सच शब्द निसाण॥
- हर बिन आन न कोई समरथ, तेरी आस तेरा मन तान॥
- सरब घटा के दाते स्वामी, दे सो पहरन खाण॥
- सुरत सत चतराई शोभा, रूप रंग धन मान॥
- सरब सुख आनन्द "नानक", जप राम नाम कल्याण॥
(तीन ताल मात्रे १६)
स्थाई
समतालीखालीताली
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