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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग १.djvu/४४

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(४७)

अन्तरा



सं — सं —
ग॒ म ग॒ प



͢गं रें सं सं
म ग॒ रे स


म म प प
नी॒ ध प म


नी॒ — नी॒ नी॒
प ध म प



राग काफी

ताल तीन

शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

यह मन नेक न कह्यो करे।

सीख सिखाय रह्यो अपनी सी।
दुरमति तें न टरे॥
मद माया बस भयो बांवरौ,
हरी जस नहीं उचरे॥
करि परपंच जगत के डहकै,
अपनौ उदर भरे॥
स्वान-पूंछ ज्यों होय न सूधौ,
कह्यो न कान धरै॥
कह 'नानक' भजु राम नाम नित,
जातें काज सरे॥