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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग १.djvu/५३

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(५६)
राग भूपाली

( ताल तीन मात्रा १६)

भजन कबीर

भजो रे भैया राम गोविन्द हरी ।
जप तप साधन कछु नहीं लागत, खरचत नहीं गठरी।
संतत संपत सुख के कारण , जासों भूल परी ।
कहत 'कबीर' राम न जा मुख, ता मुख धूल भरी ।।

राग भूपाली

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



ग — — ग
री — — भ



धा धि धिं धा



प रे ग ग
जो रे भै या



धा तिं तिं ता

ध सं ध प
रा — म गो



ता धिं धिं धा

ग रे स रे
बिं — द ह

अन्तरा





सं सं सं सं
क छु न हीं

ग — — ग
री — — भ





ध — सं सं
ला — ग त

प रे ग प
जो रे भै या


ग प ग ग
ज प त प

ध सं ध प
ख र च त


प — ध ध
सा — ध न

ग रे स रे
न हीं ग ठ