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( ताल तीन मात्रा १६)
भजन कबीर
- भजो रे भैया राम गोविन्द हरी ।
- जप तप साधन कछु नहीं लागत, खरचत नहीं गठरी।
- संतत संपत सुख के कारण , जासों भूल परी ।
- कहत 'कबीर' राम न जा मुख, ता मुख धूल भरी ।।
( ताल तीन मात्रा १६ )
समतालीखालीताली
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अन्तरा
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