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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग १.djvu/६५

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(६८)

भजन नं.३

फूलों से तुम हंसना सीखो, भवरों से तुम गाना।

सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना ।।
धूए' से तुम सारे सीखो, ऊँची मंजिल जाना ।
वायु के झोकों से सीखो, हरकत में ले आना।
वृक्षों की डाली से सीखो, फल पाकर झुक जाना।
मेंहदी के पत्तों से सीखो, पिस-पिस कर रङ्ग लाना॥
पत्ते और पेड़ों से सीखो, दुःख में धीर बंधाना ।
धागे और सुई से सीखो, बिछुड़े गले लगाना।।
मुर्गे की बोली से सीखो, प्रातः प्रभु गुण गाना।
पानी की मछली से सीखो, धर्म के हित मर जाना ।।

भजन नं.३

ताल कहरवा


x
सं — सं —
फू — लों —

प ध प म
भ व रों —

म ग रे —
की — कि र

ध — प नी
औ — र ज


x
सं — सं सं
से — तु म

ग रे ग म
से — तु म

ग — म —
णों — से —

ध नी प —
गा — ना —


x
नी नी नी सं
हं स ना —

प — प —
गा — ना —

प — प —
सी — खो —


x
नी ध प —
सी — खो —

स — म म
सू — र ज

ध — ध —
ज ग ना —