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( ४५)
- भजन सूरदास
- राग आसावरी
- भजन सूरदास
- अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल ।
- काम क्रोध को पहिरि चोलना, कंठ विषयों की माल ।।
- माया मोह के नूपुर वाजत, निन्दा शब्द रसाल ।
- भरम भरयो मन भयो पखावज, चलत कुसंगत चाल ।।
- तृसना नाद करत घट भीतर, नाना विधि दे ताल ।
- माया को कटि फेंटा बाँध्यो, लोभ तिलक दे भाल ॥
- कोटिक कला कांछि देखराई, जल थल सुधि नहीं काल ।
- 'सूरदास' की सबै अविद्या, दूरि करो नन्द लाल ॥
स्थाई
समतालीखालीताली
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