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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/५७

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(:६४ ) अन्तरा म म म प नी नी भगत का - र ग 31 सं-सं सं सं संसं. प न रें-रे-रें । म धों रयो | आ रें पं श - - प - नी सं नी ध री संस सं ना ध कु श हर ना प “ध-प म मार-र ली - गरे नो- स रे म ध र यो नी सं ही ना नीध पमगर म गम रग नीस धी-र-ह । री तुम - भजन मीरा 2 २ राग देस मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई । जाके सीस मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥ शंख चक्र गदा पद्म, कंठ माल सोही । संतन ढिग बैठि वैठि, लोक लाज खोई ।। तो फैल गई, जानत सब कोई। अंमुवन जल सींच सींच प्रेम वेलि वोई। 'मीरा' के प्रभु लगन लागी होनो हो सो होई ॥ अत्र वात