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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/५६

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(६३ ) भजन मीरा... राग देस चीर।। (ताल कहरवा) हरी तुम हरो जन की भीर । द्रौपदी की लाज राखी, तुरत बढ़ायो भगत कारण रूप नरहरि । धरयो आप सरीर। हिरण्याकुश मारि लीन्हों, धरयो नाहिन धीर॥ बड़तो गजराज राख्यो, कियौ बाहर नीर । दासो 'मीरा' लाल गिरधर, चरण कँवल पर सीर!! तालकहरवा X X गम रग नस र म ह री तुम X X प म he ज न stri स गम रमनीलग री नीस -प दि मीर ह प नो घ -- नी नी नीनी नुन बढ़ा यो भ नी ध पम ची