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पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/६७

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( ७६ ) O +. नी| सरें सं ताल रूपक + नी री cho ध प ध धप निरा -ली भू-ते प नी ध-प स a म लों शा वा प म- !T - रे - स ध को Hrnc चा - भजन २ हे प्रभु, हे प्रभु, हे प्रभु, हे प्रभु ! तेरा हर रंग देखा निराला प्रभु !! तेरी आग में देखी ज्वाला प्रभु !!! कहती फिरती है बुलबुल यही कूवकू तूही तृ, तूही तृ, तृही तू, तृही तू दिया सूरज को तृने उजाला प्रभु तेरी आग में देखी ज्याला प्रभु सारे विश्व को नृने सम्भाला प्रभु दुही न तूही नृ देखा फूलों को जब खिलखिलाते तेरी महिमा के गीतों को गाते हुए खुश्यू दे कर हमें यह मुनाते हुए तूही तू दुनियां दृडती फिरती तुझे दरबदर मन्दिर मसजिद गिरजे में शामो-सहर 'वीर' कहते है सारे फरदो-चार नृही नू