पृष्ठ:संगीत-परिचय भाग २.djvu/६९

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( ७८ ) भजन ३ प्रीतम तेरे प्रेम में जिसने है मन रंगा लिया। दीपक जला के ज्ञान का पर्दा दुई मिटा लिया । जीवन में एक बार भी जिसने लगाई हो लगन । शैदा हुआ वह प्रेम में अपनी खुदी मिटा गया । देखी है जिसने हे प्रभू तेरे द्वारे की झलक । दर दर को भिक्षा छोड फिर तेरे द्वारे आ गया ।। मानुप्य क्या जहान के जीव सभी गुण गा रहे । बुलबुल भी तेरे प्रेम का नग़मा हमें सुना रहा । देखा चमन में फूल को उसमें तेरे जहूर को जलवा तेरा जहान में याद तेरी दिला रहा ।। 'वीर' करूं उपाय कया तेरी शरण में आने का। तन मन में रमा है न नैनों में तू समा रहा ॥ ताल दादा स्थाई + ध प ग्री त ग || + tooks त म म प ध प प घ जि स न है। म ध लि न रं गा या म प ग स दीपक ज प्रे - प ध प ध परदा टु मि टा