पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१०१

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  • सङ्गीत विशारद *

२६-पूर्व रागों की विशेषता आरोह मे और उत्तर रागा का चमत्कार अवरोह में दिखाई देता है। २७-प्राय प्रयेक थाट से पूर्व योर उत्तर राग उत्पन्न हो सकते हैं । • गभीर प्रकृति के रागों में पड़न, मध्यम या पचम का विशेप महत्व होता है तथा मन्द्र सप्तक में उनका अधिक महत्व माना गया है। किन्तु जुद्र प्रकृति के रागों में यह बात नहीं पाई जाती। २६-सधिप्रकाश रागों के द्वारा करुण व शात रस, रे ग ध तीव्र वाले रागों से शृगार व हास्य और कोमल गनि वाले रागो द्वारा पीर, रौद्र व भयानक रसा का परिपोपण होता है। ३०-एक थाट के रागों से दूसरे थाटों के रागों में प्रवेश करते समय, परमेल प्रवेशक राग गाये जाते हैं। ३१-सधिप्रकाश राग सूर्योदय और सूर्यास्त के समय गाये वजाये जाते हैं और इनके वाढ तीव्र रे ग व वाले राग गाये जाते हैं या कोमल ग नि वाले राग गाये जाते हैं। 37-जिन रागों मे कोमल न लगता है जैसे काफी और समाज थाट के राग । इनके आरोह में बहुधा तीन नि का प्रयोग भी कर दिया जाता है । ३३-किसी राग में जब स्वर लगाये जाते हैं तो वे अपने कम अधिक या वरावर के परिमाण में लगकर दुर्वल प्रबल या सम माने जाते हैं। दुर्वल का अर्थ वर्जित नहीं है । ३४-दो-तीन या चार स्वरो के समुदाय को 'तान' कहते हैं, राग नहीं कह सकते । ३५-दोपहर १२ वजे के वाद तथा रात्रि के १० बजे के बाद जो राग गाये जाते हैं, उनमे क्रमश सा, म, प का प्रावल्य होता चला जाता है। ३६-दोपहर को गाये जाने वाले रागा के आरोह मे रेध या तो लगते ही नहीं या दुर्बल होते हैं । ठीक दोपहर के समय गाये जाने वाले रागों में रिपभ और निपाद स्वर खव चमकते हैं। ३७-जिन रागों में सा, म, प, यह स्वर वादी होते हैं, वे प्राय गभीर प्रकृति के राग होते हैं । ३८-सवेरे के रागों में कोमल रेध की प्रबलता रहती है और शाम के रागों मे तीव्र ग नि अविक दिमाई देते हैं। ३६-निसारेग यह स्वर समुदाय शीत्रतापूर्वक सधिप्रकाशत्व सूचित करता है । ४०-उत्तर रागों का स्वरूप अवरोह मे और पूर्व रागों का स्वरुप आरोह मे विशेष रूप से सुलकर दिखाई देता है।