पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१०५

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११२ शाम शाणिनी पद्धति सङ्गीत के कुछ प्राचीन ग्रन्थकारी ने रागो का वर्गीकरण राग-रागिनी-रागपुत्र राग-पुत्रवधू इस प्रकार किया है । इनमें मुख्य चार मता का उल्लेग मिलता है - (१) शिवमत या सोमेश्वर मत, (२) भरतमत, (३) झल्लिनाथमत, (४) हनुमत मत । इन मतों के मानने वाले विद्वानों में मुख्य छ रागो के बारे में भी मतभेद था, अर्थात कोई विद्वान अपने छ राग एक प्रकार से मानते थे और कुछ विद्वान अपने छ राग भिन्न प्रकार से मानते थे। शिवमत ( सोमेश्वर मत ) के ६ राग ३६ रागिनी राग प्रत्येक की रागिनी बसन्त १ मालवी, २ त्रिवेणी, ३ गौरी, ४ केदारी, ५ मधुमाधवी, ६ पहाडिका १ देशी, • देवगिरी, ३ वराटी, ४ तोडी, ५ ललिता, ६ हिंदोली ३ पचम १ विभापा, २ भूपाली, ३ कर्णाटी, ४ वडहसिफा, ५ मालवी, ६ पटमजरी १ मल्लारी, २ सोरठी, 3 सावेरी, ४ कौशिकी, ५ गान्धारी, ६ हरङ्गारा १ भैरवी, २ गुर्जरी, ३ रामकिरी, ४ गुणकिरी, ५ वङ्गाली, ६ सैंधवी ६ नटनारायण | १ कामोदी, २ आभीरी, ३ नाटिका, ४ कल्याणी, ५ सारङ्गी, ६ नट्टहवीरा ४ मेघ ५ भैरव शिवमत को मानने वालो के लिये दामोदर पण्डित कृत 'सगीत दर्पण' ग्रन्थ महत्वपूर्ण माना जाता है । शिनमत व कल्लिनाथ मत में राग सख्या ६ मानकर प्रत्येक की ६-६ रागिनी मानी हैं, किन्तु अन्य मतों मे ६ राग मानकर उनकी ५-५ रागिनी मानी हैं । अर्थात् शिवमत व कल्लिनाथ मत ६ राग ३६ रागिनी के सिद्वान्त को मानते हैं और भरतमत तथा हनुमान मत में ६ राग ३० रागनी का सिद्धान्त स्वीकार किया गया है। भरतमत के ६ राग ३० रागिनी राग प्रत्येक राग की ५-५ रागिनी १ भैरव . १ मधुमाधवी, २ ललिता, ३ वरारी, ४ भैरवी, ५ वहुली १गुजरी, • विद्यावती, ३ तोड़ी, ४ सम्यावती, ५ कुकम २ मालकोस