माया, माछाछ शादि के छोड़ नायक-जो प्राचान तथा नवीन दोनो प्रभार के मद्गीत का पूर्ण नाता है और गुर- परम्परा मे मिन्नी हुई शिक्षा के अनुसार ताल और म्यर में उसी हुई चीजें शुद्ध रूप मे गाना बजाता है, उसे नायर कहते हे पार उसके द्वारा प्रदर्शित को हुइ कला को नायकी रहत है। गायक--गुरु परम्परा म यो दुई चीजों को या नायक द्वारा प्रदर्शित मद्गीत में अपनी बुद्धि मे अलकार र तानों का प्रयोग करके उममें मौन्दर्य र निचित्रता पैदा करके गाता है, उमे गायक कहते ई श्रोर उमरे द्वारा जो कला प्रदर्शित होती है उसे गाको रहते है। क्लानन्त-कतारन्त का मुग्य गुण है प्रिया सिद्धि । जिमके नित्यप्रति के अभ्यास मे गला और हाय ग्य ते चार हो । जो ग्रुपद, धमार का पूर्ण नाता हो श्रोर कुशलता पूर्वक गाकर श्रोताओं का मनोरजन कर मके, उमे "कलावन्त" कहते है। गान्धर्व-जो मार्ग सङ्गीत को गा बजा सकते हों तथा राग-रागनियो की भी पूर्ण जानकारी रमते हा, उन्हें गान्धर्ष कहत है। पण्डित -जिन्हें गायन गाव का तो पूर्ण ज्ञान है किन्तु गायन क्ला अर्थात क्रियात्मक सङ्गीत का माधारण ज्ञान है, उन्हें मगीत कला के पण्डित कहते हैं। सद्गीत ताम्रकार-जिसे मङ्गीत की प्राचीन और नवीन पद्वति की जानकारी हो, मङ्गीत का पर्व इतिहाम, प्राचीन और अर्माचीन शुद्ध मप्तको का ज्ञान हो, प्राचीन और अाज की गायन पद्धति का अतर प्रकट करने को नमता रखता हो। गीत प्रसन्ध, वायों की प्रभार ताल, नृत्य काइतिहाम अपनी ले चना द्वारा प्रकट कर मके एव मङ्गीत का वर्तमान म्वरूप और भविर में उसकी उन्नति पर अपने योग्य विचार प्रकट कर के मङ्गीत कला का आदर्श उपस्थित र मरे पार प्राचीन तथा याधुनिक मङ्गीत पद्वति पर नवीन प्रयों का निर्माण कर सके, उसे 'मगोत शास्त्रमार' कहते हैं। मगीत शिनर-जो शान्तवृति मे विद्यार्थी को मङ्गीत शिक्षा दे सके एवं उसकी कठिनाइयों का जानकर, उसकी आवाज का धर्म, ग्रहण शक्ति, मचि पर ध्यान देकर सहज यार मरल मार्ग से ममभाने-पढाने की क्षमता रखता हो, उसे सगोत शिक्षक कहते हैं। नगीत शिक्षक गयो की महफ़िल मे भैठकर अपना रङ्ग चाहे न जमा सके किन्तु वह अच्छे मगीत विद्यार्थी तैयार करने का गुण रचने वाला हो। कमाल-जो गायक गजल, दाग कन्याली इत्यादि गाते हैं, उन्हें कव्वाल रहा जाता है।
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