पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/११२

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  • संगीत विशारद *

११६ उपरोक्त समस्त दोषों से अच्छे गायक को बचना चाहिए, ऐसा शास्त्रविधान है यहां पर यह प्रश्न उठ सकता है कि उपरोक्त २५ दोषों में कुछ दोष ऐसे भी तो हैं, जो अच्छे-अच्छे गायकों में पाये जाते हैं, जैसे १६ और २३ अर्थात् बहुत से बड़े-बड़े गायक अपने गायन में वर्जित स्वर प्रयोग करते देखे जाते हैं और अनेक गायक रागों को मिश्र करके यानी मिलाकर गाते हैं। इसका उत्तर यही दिया जासकता है कि कुशल गायक जब कभी वर्जित स्वर का प्रयोग राग में करते हैं, वहां वे विवादी स्वर के नाते ऐसी कुशलता से उसे लगाते हैं कि राग का सौन्दर्य बिगड़ने के बजाय और खिल उठता है, अतः उपरोक्त नियम का अपवाद समझते हुए उनका वह कृत्य "गायक अवगुण" श्रेणी में नहीं आता। 'समरथ को नहिं दोष गुसांई' की उक्ति के अनुसार वे दोषी नहीं ठहराये जासकते, क्योंकि उनको यह सामर्थ्य प्राप्त है कि वे राग में विकृत स्वर लगाकर भी उसके द्वारा एक विशेषता दिखादें। इसके विरुद्ध साधारण गायक यदि ऐसे कृत्य करने लगेगा तो वह राग रूप को ही बिगाड़ बैठेगा, इसी प्रकार रागों में मिश्रण करने के लिये भी कुशल और समर्थ सङ्गीतज्ञ दोषमुक्त किये जासकते है, क्योंकि वे जब किसी एक राग में दूसरे राग के स्वर दिखाते हैं या मिलाते हैं, तो उस मुख्य राग का रूप नहीं बिगड़ने देते, प्रत्युत वहां पर अन्य राग की थोड़ी सी छाया लाकर 'तिरोभाव' दिखाते हुए मुख्य राग को कुछ देर के लिये छिपाकर फिर आविर्भाव द्वारा उसे प्रकट करके अपना कौशल दिखाते हैं। इसी कार्य को एक साधारण गायक करने लगे तो वह कठिनाई में पड़ जायगा और मुख्य राग का रूप भी नष्ट कर बैठेगा । इसीलिये शास्त्रकारों ने इसे भी दोष माना है। अतः शास्त्रों में वर्णित • उपरोक्त गुण-अवगुणों पर सङ्गीत विद्यार्थियों को पूर्ण ध्यान देना चाहिए ।