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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/११६

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  • सङ्गीत विशारद *

१२३ मध्यम और अधम वाग्गेयकार मध्यम ओर अधम वाग्गेयकार के लिये इस प्रकार शास्त्रों में लिखा है:- विदधानोऽधिकं धातु मातुमंदस्तु मध्यमः । धातुमातुविदप्रौढः प्रबंधेष्वपि मध्यमः 11 रम्यमातुविनिर्माताऽप्यधमो मंदधातुकृत । वार्थ-जो स्वर रचना अर्थात धातु में प्रवीण है और मातु ( पद्य रचना) में मन्द बुद्धि है, वह मध्यम श्रेणी का वाग्गेयकार है । एवं जो स्वर रचना यानी स्वरलिपि करने का ज्ञान रखता हो और पद्यरचना ( मातु ) का भी अच्छा ज्ञाता हो, किन्तु भिन्न-भिन्न प्रकार के 'प्रबन्ध' गायन में कुशल न हो वह भी मध्यम श्रेणी में ही आता है । अधम वाग्गेयकार वह है, जिसे केवल शब्द ज्ञान तो हो, किन्तु पद्यरचना ( कविता ) तथा स्वर रचना ( स्वरलिपि ) की जानकारी नहीं रखता हो ।