- सङ्गीत विशारद *
१२५ तत्तदेशस्थया रीत्या यत्सात् लोकानुरंजनम् । देशेदेशे तु संगीतं तद्द शीत्यभिधीयते ॥ –सङ्गीत दर्पण भावार्थ-जो सङ्गीत देश के भिन्न-भिन्न भागों में वहां के रीत रिवाजों के अनुसार जनता का मनोरंजन करता है, वह देशी सङ्गीत कहलाता है । उपरोक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में जैसा सङ्गीत प्रचलित है, वह सब देशी सङ्गीत ही है । अतः ग्वालियर का ध्रुपद गायन, मथुरा का होरी गायन, मिर्जापुर का कजरी गायन, बनारस और लखनऊ का ठुमरी गायन, मणिपुर का मणीपुरी नृत्य, लखनऊ का कत्थक नृत्य, बृज का गोपीनृत्य, गुजरात का गर्वानृत्य इत्यादि सब देशी सङ्गीत के अन्तर्गत ही जाते हैं। ग्रह अन्श और न्यास गीतादौ स्थापितो यस्तु स ग्रहस्वर उच्यते । न्यासस्वरस्तु विज्ञेयो यस्तु गीतसमापकः । बहुलत्वं प्रयोगेषु सचांशस्वर उच्यते ॥१६३॥ -संगीतदर्पण अर्थात्-गीत के आरम्भ में ही जो स्वर स्थापित किया जाता है उसे ग्रह स्वर कहते हैं । गीत की समाप्ति जिस स्वर पर होती है उसे न्यास स्वर कहते हैं और प्रयोग में जो स्वर बहुलत्व दिखाता है, अर्थात बारम्बार आता. है उसे अन्श कहते है । इस प्रकार प्राचीन ग्रन्थों में तीन स्वर भेद मिलते हैं। प्राचीनकाल में ग्रह-अन्श-न्यास स्वरों का ध्यान रखते हुए प्रत्येक राग एक नियमित स्वर से आरम्भ किया जाता था और एक नियमित स्वर पर उसकी समाप्ति होती थी, इसी प्रकार बारम्बार या अधिक प्रयोग होने वाले स्वर को महत्व देकर उसे अन्श स्वर मानते थे। जिस प्रकार कि हम आजकल वादी स्वर मानते हैं। संभव है, प्राचीन समय में उपरोक्त स्वर नियमों का पालन उत्तम रीति से किया जाता हो, किन्तु सङ्गीत परिवर्तन शील है अतः आगे चलकर गायक-वादकों ने ग्रह-न्यास स्वरों का नियम नहीं माना, अर्थात् अमुकराग अमुकस्वर से ही आरम्भ होना चाहिए या अमुक स्वर पर ही उसे समाप्त करना चाहिए, इस बन्धन को तोड़कर वे चाहे जिस राग या गीत को भिन्न-भिन्न स्वरों से प्रारम्भ करके गाने लगे और भिन्न-भिन्न स्वरों पर समाप्त करने लगे। उन्होंने केवल अन्श स्वर का सिद्धान्त “वादी स्वर" के रूप में माना जो आजतक प्रचलित है। क्योंकि वादी स्वर से राग की पहिचान होजाती है कि यह पूर्वांग वादी है या उत्तरांग वादी ? एवं वादी स्वर के द्वारा राग गाने का समय पहचानने में भी सहायता मिलती है। अतः प्राचीन समय के स्वर-नियमों में से ग्रह और न्यास छोड़कर "अन्श” स्वर के नियम का पालन करना आवश्यक है।