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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२

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साला मीतज्ञ बनने के उपचारमा (१) पुस्तकालय और संगीत ___ संगीतकार और संगीतज्ञ के लिये पुस्तकालय रखना नितांत आवश्यक है, बिना इसके ये दोनों अपनी सांगीतिक प्रवृत्तियों की अभिवृद्धि नहीं कर सकते । प्रत्येक संगीतज्ञ को चाहे वह छोटे ही रूप में क्यों न हो, एक लाइब्रेरी अवश्य रखनी चाहिये। साहित्य और सङ्गीत का घनिष्ट सम्बन्ध है। इन दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता। जिस सङ्गीत की पृष्ठभूमि में उच्च रचनाऐं, रम्य भावनाऐं, सुन्दर विचार, रंगीन एवं कलात्मक उड़ाने नहीं होती, वह सङ्गीत शाश्वत एवं अपूर्व नहीं बन सकता । जीवन के ठोस तत्वों पर सङ्गीत की नींव होनी चाहिये जिससे विश्व को उज्वल आलोक प्राप्त हो सके, शक्तिशाली सांगीतिक उत्पादन मिल सके; सङ्गीत की उच्च कोटि की अभिव्यक्ति अपने सुन्दरतम रूप में प्रस्तुत हो सके और सङ्गीत का स्वरूप पुष्टिकारी होकर विश्व को सम्मोहित कर सके। अतः आपका परम कर्तव्य है कि सङ्गीत की किसी भी उपयोगी पुस्तक को हाथ से न निकलने दें और उसे खरीदकर अपने पुस्तकालय का उपकरण बनायें। अवकाश के समय आप इन पुस्तकों का मनन कर सकते हैं। आपको यह स्मरण रखना चाहिये कि आपको सङ्गीत का केवल व्यवहारिक ज्ञान ही कुशल सङ्गीतज्ञ नहीं बना सकता जब तक कि आपको सङ्गीत का पूर्णरूपेण शास्त्रीय ज्ञान न हो। यह शास्त्रीय ज्ञान अध्ययन से ही अर्जित किया जा सकता है। व्यवहारिक ज्ञान का विकास शास्त्रीय ज्ञान पर ही आधारित है। जितना आपका शास्त्रीय ज्ञान विकसित होगा उतना ही अधिक आपका व्यवहारिक ज्ञान परिपुष्ट होगा। जो व्यक्ति प्रमादी हैं और विधिवत अध्ययन नहीं कर पाते, उनकी सांगीतिक प्रतिभा भी अधूरी रह जाती है। सङ्गीत की सफलता केवल वही नहीं है जो आपको सङ्गीत प्रदर्शित करते समय श्रोताओं द्वारा तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य प्राप्त होती है। यह तालियों की गड़गड़ाहट की ख्याति तो क्षणभंगुर होती है, इसमें स्थायित्व नहीं होता, यह केवल चार दिनों की चांदनी के समान होती है । अतः यह कला को ऊपर नहीं उठा सकती। इसके लिये आपको सङ्गीत साहित्य का पूर्ण अध्ययन करना पड़ेगा। ___अध्ययन करते समय अपना दृष्टिकोण संकीर्ण न बनाइये। आपको प्रत्येक पुस्तक को चाहे वह भारतीय लेखक की हो अथवा विदेशीय लेखक की, मनन अवश्य करना चाहिये । आप इस तथ्य को हमेशा याद रक्खें कि प्रत्येक भाषा में सुन्दर कलाकार हो गये हैं, अतः अपने दृष्टिकोण को उदार बनाते हुए आप जो अध्ययन करेंगे उससे आपका ज्ञान सर्वोन्मुखी होगा। आपके संगीत की पृष्ठभूमि उदार और गम्भीर बन जायेगी। हमारे यहां के अधिकांश सङ्गीतकारों में यह अभाव पाया जाता है। हमारे भारतीय सङ्गीतकार अधिकतर अशिक्षित हैं, वह अध्ययन की ओर से उदासीन हैं, अतएव उनका ज्ञान सीमित दायरे में रह जाता है । वे फिर सङ्गीत की दौड़ में विशेष आगे नहीं बढ़ पाते। यह भी प्रायः देखा जाता है कि उनके अन्दर . अ +