- सङ्गीत विशारद *
१२६ गायक जब ख्याल गाना आरम्भ करता है, तो पहिले विलम्बित लय में बड़ा ख्याल गाता है, जिसे प्रायः विलम्बित एकताल, तीनताल, झूमरा, आड़ा चौताला इत्यादि में गाता है, फिर इसके बाद ही छोटा ख्याल मध्य या द्रुतलय में प्रारम्भ कर देता है, उसे त्रिताल या द्रुत एकताल में गाता है। छोटे-बड़े ख्याल जब गायक एक स्थान पर एक समय में गाता है तो ये दोनों ही प्रायः किसी एक ही राग में होते हैं, किन्तु बोल या कविता बड़े-छोटे ख्यालों की अलग-अलग होती है। बड़े ख्यालों का प्रचार १५ वीं शताब्दी में जौनपुर के सुलतानहुसेन .शर्की द्वारा हुआ । मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रँगीले ( सन् १७१६ ई० ) के दरबार के प्रसिद्ध गायक सदारङ्ग ( न्यामतखां ) और अदारंग ने हजारों ख्याल रचकर अपने शिष्यों को सिखाये, किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने अपने वंशजों को एक भी ख्याल नहीं सिखाया और न गाने ही दिया । रामपुर के वजीरखां सदारङ्ग के ही वंशज थे और मुहम्मदअली खां तानसेन के वंशज थे, ये दोनों ही ध्रुवपद गायक थे, ख्याल गायक नहीं । टप्पा ख्याल गायकी के बाद टप्पा गायकी का प्रचार हुआ। यह हिन्दी का शब्द है । शब्द कोष में तो 'टप्पा' के बहुत से अर्थ मिलेंगे, जैसे-उछाल, कूद, फलांग, अन्तर, फर्क, एक प्रकार का चलता गाना जो पंजाब से चला है। इनमें से सङ्गीत विद्यार्थियों के लिये अन्तिम अर्थ ही लेना उचित होगा। कहा जाता है कि लखनऊ के नवाब आसफ़- उद्दौला के दरवार में एक पंजाबी रहते थे, जिनका नाम शोरी मियां था, इन्होंने ही टप्पे की गायकी का आविष्कार किया। . टप्पा अधिकतर काझी, झिंझोटी, बरवा, भैरवी, खमाज इत्यादि रागों में गाया जाता है । इसमें स्थायी और अन्तरा ऐसे दो भाग होते हैं । टप्पा क्षुद्र प्रकृति की गायकी है, इसके गीतों में शृङ्गार रस की प्रधानता होती है और पंजाबी भाषा के शब्द ही इसमें अधिकतर पाये जाते हैं। इसकी ताने दानेदार बहुत तैयार लय में गाई जाती हैं । टप्पा की गति बहुत चपल होती है। कुछ विद्वानों का ऐसा भी मत है कि प्राचीन "बेसरा" गीति से इस गायकी की उत्पत्ति हुई है । ठुमरी जिन रागों में टप्पा गाया जाता है, प्रायः उनमें ही ठुमरी गाई जाती है। इसमें शब्द तो कम होते हैं, किन्तु शब्दों को हाव-भाव द्वारा बताकर गीत का अर्थ प्रकट करना ठुमरी गायक की विशेषता मानी जाती है । ठुमरी का जन्म लखनऊ के नवाबों के दरवार में हुआ । कहा जाता है कि इसके आविष्कारक गुलामनवी, शोरी के घराने के लोग ही थे ठुमरी अधिकतर पंजावी त्रिताल में ही गायी जाती है, उसकी गति अतिद्रुत नहीं होती। लखनऊ और वनारस ठुमरी के लिए प्रसिद्ध हैं। बनारसी ठुमरी में सुन्दरता और मधुरता अधिक पाई जाती है । ठुमरी में प्रायः राग की शुद्धता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता । अनेक गायक ठुमरी गाते समय भिन्न-भिन्न रागों के स्वरों का मिश्रण करके उसे -