पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३०

  • सङ्गीत विशारद *

सुन्दर बनाने का प्रयत्न करते हैं । महाराष्ट्र मे ठुमरी को विशेष आदर या प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा जाता । क्योंकि महाराष्ट्र में राग नियमों का पालन कुछ सरती से किया जाता है, सम्भवत इसीलिये वहा ठुमरी का महत्व नहीं है, फिर भी ठुमरी का गायन किसी प्रकार घृणित नहीं है और इसे यू० पी० मे विशेष सम्मान प्राप्त है । तराना यह भी रयाल के प्रकार की एक गायकी है। इसमें गीत के बोल ऐसे होते हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं होता। जैसे ता ना दा रे, तदारे, ओदानी दीम, तनोम इत्यादि । तराना में भी स्थाई और अन्तरा ऐसे २ भाग होते हैं। तानों का प्रयोग भी इसमें होता है। कहा जाता है कि अमीरखुसरो जब हिन्दुस्तान आये, तो यहा की संस्कृत भाषा को देखकर वे घबराये, क्योंकि वे तो अरबी भाषा के विद्वान थे। अत उन्होंने निरर्थक शब्द गढकर तरह-तरह के हिन्दुस्थानी राग गाये, वे निरर्थक शब्द ही 'तराना' नाम से प्रसिद्ध हुए । तराने में राग, ताल और लय का ही आनन्द है, शब्दों की ओर कोई ध्यान भी नहीं देता । तरानों का गायन हमारे देश में मनोरजक माना जाता है। वहादुरहुसेनसा, तानरसया, नत्थूसा इत्यादि के तराने विशेष प्रसिद्ध है। तिरवट यह भी तराने की तरह गाया जाता है, किन्तु तराने से तिरवट गायकी कुछ कठिन है । तिरवट में मृदग के बोल अधिक होते हैं, इसे समी रागों में गाया जा सकता है। वर्तमान समय में तिरवट गायकी का प्रचार कम हो गया है। होरी-धमार जव 'होरी' नाम के गीत को धमार ताल में गाते हैं, तो उसे धमार' कहा जाता है। धमार गायन में प्राय वृज की होली का वर्णन रहता है। धमार में दुगुन, चौगुन, चोलतान, गमक इत्यादि का प्रयोग होता है, अत यह कठिन गायकी है। चमार के गायकों को स्वर ताल और राग का अच्छा ज्ञान होना चाहिये । प्राय देया जाता है कि ख्याल गायकों की अपेक्षा त्रुपद गायक 'चमार' को अच्छा गा लेते हैं। 'धमार' गाने में स्याल के समान तानें नहीं ली जाती। गजल गजल अधिकतर उर्दू या फारसी भाषा में होती है । इसके गीतों में प्राय आशिक- माशूक का वर्णन अधिकतर पाया जाता है। इसीलिये यह शृङ्गार रस प्रधान गायकी है । गजल अधिकतर रूपक, पश्तो, दीपचन्दी, दादरा, कहरवा तालों मै गाई जाती है । वे ही गायक गजल गाने में सफल होते हैं, जिन्हे उर्दू-हिन्दी का अच्छा ज्ञान है और जिनका शब्दोचारण ठीक है । गजल की अनेक तर्जे हैं। वर्तमान समय में समाक चित्रपटों द्वारा गजन और गीत का फैलाव व प्रचार बहुत हुआ है।