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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२९

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  • सगीत विशारद *

अभ्यास मूलक बहुत्व माना जायगा । प्राय राग के वाढी या सवादी स्वर का ही अभ्यास मूलक बहुत्व दिखाया जाता है, किन्तु किसी-किसी राग में अन्य स्वर का भी बहुत्व देसने में आता है । सङ्गीत रत्नाकर का भी यही आशय प्रतीत होता है अलपनात्तथाऽभ्यासाद्वहुत्वं द्विविधं मतम् । पर्यायांशे स्थितं तच्च वादिसम्वादिनोरपि ॥ -सद्गीतरत्नाकर भावार्थ-स्वरों को अलपन और अभ्याम २ प्रकार से बहुत्व दिया जाता है, यह बहुत्व प्राय वादी सम्बादी स्वरों को तो मिलता ही है, किन्तु कभी-कभी राग के किसी दूमरे "पर्याय अन्श" स्वर को भी यह वहुत्व दिया जाता है । पकड-स्वरों का एक ऐसा समूह जिससे राग का स्वरूप व्यक्त होता है अर्थात् जिन स्वरों के समूह से राग पहिचाना जा सकता है, उसे "पकड" कहते हैं । प्रत्येक राग को पहिचानने के लिये अलग-अलग पकड होती है । उदाहरणार्थ-राग यमन की पकड यह है - निरे ग रे, सा, पमंग, रे, मा। केवल इतने म्बर समुदाय से ही फौरन मालुम हो जायगा कि यह राग यमन का स्वरूप है । इसी प्रकार अच्छे-अच्छे गायक प्रारोहावरोह के पश्चात राग की पकड़ दिसाकर रागरूप स्पष्टतया व्यक्त करदेते हैं। मीड-किसी एक स्वर से आगे या पीछे के २-३ या अधिक स्वरों पर, ध्वनि को बिना सडित किये गाने या यजाने को मींड कहते हैं । जैसे प ध नि सा यहा पर पचम से सा तक की मींड दिसाई गई है तो इसे गाने में प से सा तक ऐसी कोमलता से जाना चाहिए कि बीच के दोनों स्वर व, नि बोल भी जाय और आवाज टूटने भी न पाये। सूत- सूत और मींड मे केवल इतना ही अन्तर है कि मींड का प्रयोग गाने में या सितार इत्यादि मिजराय वाले साजो में होता है और सूत का प्रयोग गज से बजाने वाले साजों में जैसे-सारगी, दिलरुवा, वॉयोलिन इत्यादि में होता है, तरीका वही है जो मींड का है। आन्दोलन स्वरों के हिलने या कम्पन को आन्दोलन कहते हैं, स्वरों के हिलने या उनके कम्पन से ही आन्दोलन सरया नापी जाती है। गमक-आन्दोलन के द्वारा जव स्वरों में कम्पन पैदा होता है तो उसे ही गम्भीरता पूर्वक उच्चारण करने को गमक कहते हैं, जैसे-स अ अ अरे ए ए ए ग अअअ इत्यादि। कण-किसी स्वर को उच्चारण करते समय उसके आगे व पीछे के स्वर को नि तनिक छूने या स्पर्श करने को कण कहते हैं। जैसे सा यहा पर निपाद को जरा सा स्पर्श करके मा पर पाना है तो इसे सा पर निपाट कर कण कहेंगे। . . 1 नलमामाका नाम न